गुरुवार, 25 दिसंबर 2014


हर वक़्त कुछ न कुछ सोचता रहता हु मैं
मगर सोचने से कुछ होता कहां है
डुबाकर भी सागर मुझको डुबोता कहां है

नींदे तो आती हैं हमे रातों में
नींदे तो आती हैं हमें रातों में
मगर दिल ये मेरा सोता कहां है

खुशियां सभी खो दीं हमने यहाँ पर
पर ये मेरा गम खोता कहां  है



दिलीप कुमार श्रीवास्तव